लेखनी कविता - चिर तृषित कंठ से तृप्त-विधुर- जयशंकर प्रसाद

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चिर तृषित कंठ से तृप्त-विधुर- जयशंकर प्रसाद चिर संचित कंठ से तृप्त-विधुर वह कौन अकिंचन अति आतुर अत्यंत तिरस्कृत अर्थ सदृश ध्वनि कम्पित करता बार-बार, धीरे से वह उठता पुकार - ...

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